Thirukkural in Konkani |
पुस्तक
एक: धनापासून
अद्याय १०१. परिक्षीणित धन |
|
1001 |
कोण संग्रहकर्ता महत धन,
जल्यारि करना रूचिकर । |
1002 |
कोण ना
दिव्चे,
जल्यारि लेकिता तो
जाणता म्होणु ताजे मोलादिक,
। |
1003 |
कोण आशेता धना खतीरि,
नयि कीर्तिक,
तांगेले जन्माक । |
1004 |
केन्ना तो मोरूक जव्चे, कसले तो विचारता असा सोडिलेले? । |
1005 |
कोण ना
खरचिताति तांगेले धन
ना
दिताति,
। |
1006 |
तांगेले जायते धन
असा दुःखाचे तांका कोणाक तें रबचे,
। |
1007 |
एक
सौन्दर्या मण्कि,
वर्षजाव्न येव्चे,
एकाकि,
रबताति । |
1008 |
धन
एक
लुब्धाले,
कोणाक एकल्याक ना
कोणीय स्नेह करतले,
। |
1009 |
कोण स्नेह अवगणन करता,
आत्म निग्रह,
अनी खरे सद्गुण जता विसोरचे । |
1010 |
उणें जीवित जवपी जाय असचे उदारमनाचे धनिक,
असा तरतम्य करचे । |
अद्याय १०२ . विनय |
|
1011. |
खरे विनय वायिट प्रवृतीचेरि लज्ज पव्ता;
। |
1012 |
आहार,
वस्त्र,
अनी अवशेषित असा साधारण वर्गाक,
। |
1013 |
सर्वै ते
जीवन्त रबता एक
शारीरिक घडनेन्तु,
। |
1014 |
योग्य मनुष्यांक विनय असा आभरण एक;
। |
1015 |
कोण दुसरालि चूकिक,
तांगेले स्वताचि जाव्नु,
अपमानित जाव्न अनुभव पव्ता, । |
1016 |
बुद्धवन्त करनाति नियन्त्रण विशाल लोकाक परिरक्ष जाव्न,
। |
1017 |
विनीत मनुष्य,
किंचित अपमाना पसि,
जत्तले जीवत्याग करचे,
। |
1018 |
कसले
अवशिष्ट असा अपमानित जलेले, कोण मनाक लगप ना जव्चे । |
1019 |
ताजे कुलनाश जत्तले तरि ताजे वाक्यं व्यर्थ जता;। |
1020 |
तांका कोणाक
ना
अपमान ह्रदयान्तु,
तांगेले मुद्रा खेळपाचि,
। |
अद्याय १०३. कुडुंबाची कीर्ति अधिक करचे |
|
1021 |
ना व्होडले अभिमान कीर्तिचे नका जाव्यात मेळचे, । |
1022 |
केन्ना मनुषिक प्रयत्न अनी विज्ञान गाढय जाव्न संयुज्य करताति, । |
1023 |
'हाव करतलो मजी पद्धति विख्यात', तरि एकल्यान असूका संगचे, । |
1024 |
निरंतर प्रयत्नकोर्नु, ताजे कुडुंब कोण परिचरण करता, । |
1025 |
कलंक नत्तिले जीवित,
ताजे कीर्ति निर्माण करुक,
कोण असा उद्धेश करचे । |
1026 |
ताजान कोर्नु एक
धार्मिक पौरुष दकैले असा,
। |
1027 |
निर्भय शूर पुरुष एक
युद्धान्तु तारतम्य करता,
। |
1028 |
ऋतुकालाचे ना
ते
तांका कोण असा कुडुंब मोग करचे,
। |
1029 |
कोण रक्षकर्ता ताजे गृह प्रति एक
पीडे थकून तें । |
1030 |
केन्ना पीडेन कोर्नु आक्रमण येत्ता आधाराचेरि,
गर
ते
असा पडचाक,
। |
अद्याय १०४. कृषी |
|
1031 |
परिभ्रमण लोक भूमि कोसोव्चाक अंतिमेरि परत येता,
। |
1032 |
कर्षक असा अक्षाग्र लोकाचे;
ते
असा वहन करचे । |
1033 |
कोण कृषिकर्ता अनी खता तांगेले आहार,
ते
सत्यान रबताति;
। |
1034 |
अनेक भूमि वयिरि ते
दिकतले रायु भरण करता तांगेले,
। |
1035 |
कोण उत्पन्न कर्ता तागेले स्वकीय हथान,
आहार कित्यान कोर्नु ते
जीवन कडताति । |
1036 |
मुनि वर्याले तपस नष्ठ जता सर्वै तांचे मनोरम्यता
। |
1037 |
ताजे भाराचे चारीचे एक
भागाक,
तरि भुयिंचे सारें ऊणे जता,
। |
1038 |
सारें घलचे असा अधिक चांग कृषि करचापसि,
। |
1039 |
वोचून पोळोव्नत्तिले ताजी भूमि कोण ताजे जीवित कर्ता विनियोग,
। |
1040 |
तरि बाद कर्ता दारिद्रयाक,
मनुष्य आलस्यान बसता,
परित्यक्त जाव्नु,
। |
अद्याय १०५ दारिद्रय |
|
1041 |
कसले दिता व्होडले वेदना भयप्रद आवश्या पस?
। |
1042 |
नाश करता राक्षस दारिद्रयाचे,
। |
1043 |
घट्टि धरलेले दारिद्रय तत्क्षण नाश करता,
। |
1044 |
दारिद्रयाचे ग्लानता असा शिकोव्चे,
। |
1045 |
दरिद्र,
ते
शोचनीय वेदनेन्तु,
। |
1046 |
तानी उलोव्यात उत्तरं वेचून कडिली ज्ञान युक्त संग्रह केलेली;
। |
1047 |
तागेल स्व माताक,
एक
परकी तो
जता,
। |
1048 |
जायि असप ते
कडिलो जीव मिजो कलचे दिवसा,
। |
1049 |
उज्जा मधें,
थोडी नीद जाव्यात मुकारि येक्तली जाव्नु;
। |
1050 |
ना
तरि जले दरिद्रि सन्यासाले वस्त्र धारण करताति । |
अद्याय १०६ भीक मगप |
|
1051 |
तरि तू
दिकता तांका कोणाले थकून ते
असा समचि निमगूचाक,
अर्ज करताति,
। |
1052 |
भीक मगूचान्तुयि जाव्यात स्वल्प आनन्द मेळचे,
। |
1053 |
मनुष्य कोण जाणता कसले असा रिणान्तु,
अनी खचेंवटेन तरि निषेद करना भिक्ष दोव्चे,
। |
1054 |
भीक मागप्,
असा भिक्षा दिव्चे मण्कि,
जाव्यात सन्तोष मनाक दिसचे,
। |
1055 |
कित्या मळयारि थयि असा मनुष्य भूमीरि कोण केन्नायि ना
निषेद करचे,
। |
1056 |
तरि तू
दिकता मनुष्य निषेदाचे वायिट थकून स्वतंत्रताचे,
। |
1057 |
तरि ते
कोण दिताति उत्तरं वायिटपण नत्तिले असा दिकचे,
। |
1058 |
तरि भिकारि ना
जत्ताति,
लोक भारी थण्ड अनी विशाल असचे,
। |
1059 |
कसली कीर्ति येता मनुष्याक कोण स्नेह कर्ता दिव्चाक । |
1060 |
भिकारि निषेद केलेले जव्चिना केन्नाचि कोप दकोव्चे,
। |
अद्याय १०७ भीक मगूक भय |
|
1061 |
ते
असा चांग जाव्न दा
दशलाक्ष वंटयान ना
घेव्चे,
। |
1062 |
तरि भीक मगूचे,
एक
जीविताचे भाग असा निर्मित करचे,
। |
1063 |
ना
व्होडले मूढत्व शक्तिपसि ते
सुनिश्चित करतले, । |
1064 |
कोण ना
भीक मगूचे आवश्य असजल्यारीयि चडांत चड
जाव्नसिले,
। |
1065 |
निशे पत्तळ असा तरि जल्यारीयि उदकामण्कि निर्मल जाव्न,
। |
1066 |
तरि असा जल्यारीयि उदाक एक
गयचे खतीरि तू
निमुगूचे,
। |
1067 |
"तरि तू जाव्का मगूचे" भीक मगतल्यांक हाव असा मागणें करचे, । |
1068 |
केन्ना सुरक्षा नक्तिले मगूचे तांरु अडळता । |
1069 |
मगूचे विचाराचेरि,
ह्रदय जत्तले करगूचे;
। |
1070 |
एक
थण्डाचेचे प्रतिघाताचेरि भीक मगतलो मरता,
। |
अद्याय १०८ नीचत्व |
|
1071 |
सादृश्य असिले तसले हया मण्कि अमि ना
दिकिले;
। |
1072 |
नीच,
अधिक भाग्यवन्त बुद्धवन्त जव्प्यापसि असा;
। |
1073 |
नीच असा देवा समान,
तेवयि । |
1074 |
नीच,
केन्ना ते
मेळताति कोणाक एकल्याक जताति अनिकयि अधिक नीवाचे,
। |
1075 |
स्वभाव नीचागेले असा भयाक आधार धोर्नु;
। |
1076 |
नीच,
एक
वजूचे धोला मण्कि,
सर्वै ईक
केन्नान्तु,
। |
1077 |
मात्र
ते सोडून तांका कवचित मुष्टीन कोर्नु तांगेले फटेतले खडाक, । |
1078 |
बुद्धवन्त फल
दिता एक
शरणार्थिकांगेले उत्तरांचे,
। |
1079 |
तरि जल्यारि मनुष्य चांगजाव्न भोजन केलेले अनी वस्त्र नेसिले,
नीचत्व वर्गान्तुले । |
1080 |
कसल्या भगेक असा नीच मनुष्य योग्य जाव्न?
तरि दुःख येतले,
। |
No comments:
Post a Comment