Thirukkural in Konkani |
पुस्तक
एक: धनापासून
अद्याय ५१. विज्ञान योग्य मनुष्यांगेले |
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501 |
धन, सद्गुण, संतोष अनी मरणा भय, कशी अस्तले सुखाचे । |
502 |
कुलीन
जनन, निष्कलंक योग्यताचे, विशिष्टस्थितीन्तु असचे, । |
503 |
तसि अस जल्यारियि गाढजाव्नु शिकिले अनी बुद्धवन्त, असा अपूर्व दिकचाक ते । |
504 |
तूकि
चांग
प्रकारि
ताजे
योग्यता, अनी खयि तका हरवण पडचे, । |
505 |
जर एक मनुष्यु व्होडलो अथवा नीच असा, । |
506 |
वेंचून
कडचे
मनुष्याक ना असा बन्दु सोणु रबचे; । |
507 |
वेंचप
मूढांक, स्नेह प्रेरित वात्सल्याक, । |
508 |
कोण एक अक्षीणित अपरिचिताक विश्वास पव्ता, ताजे पद्धति । |
509 |
करूनका
निश्वास
कोणी
एकलाक
कोणाक
तुवे
ना असा परीरक्षण करचे; । |
510 |
विश्वास
पव्चे
परीक्षण
कोर्नत्तिल्यांक,
अनी एक विश्वस्त मित्राक संशय लेकूचे । |
अद्याय ५२. वेंचून काडप अनी काम दिवप् |
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511 |
कोण, कोळनु चांग अनी वायिट दोनीय, निश्र्चित सोदून कडचे । |
512 |
कोण वर्दन कर्ता 'कर' अनी रबूब रोवप करता, । |
513 |
स्नेह, अनी विज्ञान, स्वच्छता अनी लोभु विमुक्त असचे । |
514 |
तंका
जाव्यात
विजय
पव्चे
सर्वतराचे परीक्षेन्तु,
। |
515 |
करि स्पर्धा, तुजे आधार इष्ट असिले स्वीकार करचे, । |
516 |
मनुष्य, प्रवृत्ति, असूचि स्थिति समयोचित जाव्नु । |
517 |
यो मनुष्य करतोलोचि ये काम ये वटेन! सम्मत दिव्चे, । |
518 |
एक मनुष्याले प्रत्येक स्वभाव असा कळचे मण्कि जाव्नु । |
519 |
एक रायु कोण संशय पव्ता विश्वस्थताचेरि तागेले, । |
520 |
ताजे
जन, रायान जाव्का दिसदीस परीक्ष करचे जाव्नु; । |
अद्याय ५३. स्नेह दकोव्चे एकलाले बंधु |
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521 |
केन्ना
भाग्य
धावन
वत्ता, ते निश्र्चित कळचे असतले, । |
522 |
तरि बन्दुले अक्षण स्नेह रबता, । |
523 |
जीव एकलालो कोण ताजे बन्दुक मेळनु रक्षित करता, । |
524 |
लाभु
लभ्यजलेल्या एक धनिक मनुष्यान, । |
525 |
मधुर
उत्तरानि मेळूनु, कोण उदारमय जाव्नु उपहर दिता, । |
526 |
उदार
मनाचे
अनी कोप मुक्त जता, । |
527 |
कयिळे
लिपून
रबूनत्तिले,
'काव', 'काव' करतले अनी खत्तले, । |
528 |
ना सर्वयि एकमट जाव्नु, जल्यारि दिताति एकेकलाक तांका दिवचे दीव्नु; । |
529 |
ताजे
बन्दु
कोण सोडिले तका निश्र्चित येत्तालो सम जाव्नु । |
530 |
मेळचे
फुडें
कोण एकलो कायि कारण नत्तिले सोडून वचे । |
अद्याय ५४. विसरप नत्तिले |
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531 |
विसरप
ते येता अभिमानान भरलेले सन्तोषा थकून, । |
532 |
नित्य
दारिद्रय निश्र्चित दिंमसि
मरचे
प्रकारि
विज्ञानाक, । |
533 |
ते अविवेक असिले मनुष्य कीर्ति संपादन करचे ना असा, । |
534 |
कोटा
भीरुक
असचे
प्रकारि
असा ते व्यर्थ असचे, । |
535 |
आलोचन
नत्तिले
मनुष्यांक आकास्मिक दुःख
उदभव
जता, । |
536 |
कोण केन्नायि सविचारता पालन करता । |
537 |
कायि
ना कठिन साध्य जाव्चाक असचे, । |
538 |
कयरि
ते असा योग्य करचाक प्रशंसा, ते तुवे जाव्का करचाक, । |
539 |
आलोचन करि ते
नाश पविले अपमानितजलेले मन्न ते,
। |
540 |
कसले
तू आश करता ना ते कठिन लभ्य जाव्चाक, । |
अद्याय ५५ न्याययुक्त राजाधिकार |
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541 |
रायाक
जाव्न, अनुकूल रबचे कोणाकयि ना अनी नितीन करचे, । |
542 |
लोक सर्वै पळेता वयरि आकाशाचेरि पाव्साखतीरि; । |
543 |
शिक्षण अनी सद्गुण ऋषींगेले
उदभवाक कारण ते,
। |
544 |
कोण नयन कर्ता ताजे प्रभुत्व स्नेह युक्त अनी भहुमानान, । |
545 |
कोणाले
थकून
राजाधिकार, नीति अनी न्याय प्रवहित जत्ता । |
546 |
नयि शुल, ते रायांक विजय दिता, । |
547 |
रायु संरक्षण करता सर्वै लोकाक जाग्रतेन,
। |
548 |
कोण असा कठोर दिकचाक, ना चिंतकोर्नु न्याय दकोव्चे, । |
549 |
संरक्षण
करचे
आक्रमणा
थकून, शिक्ष दिव्चे अपराद केलेल्याक असा; । |
550 |
शिक्ष
दिव्चे
अपराघिकांक मरण अनी उपदेक्षा केलेले । |
अद्याय ५६ क्रूर राजाधिकार |
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551 |
एक रायु आचरण कर्ता अनीति अनी अधर्म जाव्न, । |
552 |
'दिवप!' मण्कि एक चोराक कुंत समेत आवश्य जाव्न, । |
553 |
दिस दिसाचे अधर्म, तरि रायु करना समाधान, । |
554 |
तजे धन अनी प्रजा, तका निश्चित नष्ट जत्ता, । |
555 |
अश्रुधारा दुःखाचे
पूर्विले सहिष्णुता निश्चित जाव्न, । |
556 |
एक रायाले स्थिरता असा प्रभुत्व समजाव्न असचे, । |
557 |
पाव्साचे उणावान
कोर्नु
तृष्णार्त सखल भूमिचे, । |
558 |
जीवन
कडचे
एक अनीतिचो राया खाल, संपत्ती एकलाले, । |
559 |
तरि एक रायु कर्ता अन्याय चलोव्चे, । |
560 |
गायो
निश्चित जाव्न नाश जत्ता अनी पुरोहित, सूक्तं विसरताति तांगेले, । |
अद्याय ५७ निग्रहाचे अभाव |
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561 |
एक रायु योग्य जाव्नु परिगणन कोर्नु दीव्का शिक्ष अपराध केलेल्याक, । |
562 |
अदिक
संतोषाक
दीर्घजाव्नु कोण इच्छिता, । |
563 |
कोणाली प्रजा निर्दय जाव्न अनीति करता सहन,
। |
564 |
"एक क्रूर राय", प्रजापीडक प्रजेन ते संगूचे; । |
565 |
कोण असा कठोर दिकचाक अनी भिकर जाव्नु मुख असूचे, । |
566 |
कोणाले
रुक्ष
जाव्न
असचे
उलोव्चान्तु अनी असा कोळे दिकूनत्तिले, । |
567 |
कठोर
उत्तर
अनी शिक्ष दिवप न्याया भायर असिले, । |
568 |
कोण सोडता काम दुसरांक जाव्नु, करना आलोचन, । |
569 |
कोण चांग प्रकारि राज्य रक्षा ना साध्य करतले, । |
570 |
प्रजापीडक मूढ सहित तांगेले वंटो उपदेशकांचे । |
अद्याय ५८ अनुकंपा |
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571 |
पूर्वेथकून अतमरेन
हंगा
अनुकंपाचे सौन्दर्य रबता, । |
572 |
लोक उरता थयि अनुकंपा असिल्या थकून, । |
573 |
कसले
उपयोग
असा गींताक, केन्ना संगीत दिकचाक ना असचे? । |
574 |
दोळे
दीना
प्रकाश
एकलाले
मुखाचेरि, । |
575 |
केन्ना दोळे दयायुक्त करना भरलेले जाव्न,
। |
576 |
कोणाले
दोळे
प्रतिबिंबित जत्ता
ना दयेन अनुकंपित असूचे, । |
577 |
दया युक्त अनुकंप नत्तिले ते दृष्टीन पडनत्तिले असा, । |
578 |
मोगान
असचे
मंदहासान कोण सोडचेना काम करनत्तिले, । |
579 |
सहन करचे क्षमेन अनी दयामुख करुन । |
580 |
ते पिताति अनी मंदहास कर्ता, तसि असा जल्यारीयि वीष ते दिकताति रकोव्चे, । |
अद्याय ५९ चार्वृत्ति |
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581 |
विरव्यात नियमाचे
शास्त्र
अनी गुप्त चार ते, । |
582 |
एकेक दिवसा,
एकेक विषयाविशी अनी एकेक प्रवर्तन,
। |
583 |
कोण उपयोग कर्ता गुप्त चारांक, जल्यारि कोण ना सत्य मेळोव्चे, । |
584 |
ताजे
मन्त्रियो, ताजे बन्दु अनी ताजे ते, । |
585 |
निरापराध रुप अनी निर्भय दोळ्याचे, । |
586 |
शिखचाक
सत्य, एक मुनि तो जाव्यात चित्रीकरण करचे, । |
587 |
कसले
असा गुप्त जाव्नु असचे, एक गुप्त चाराक सिश्चितकळ्का । |
588 |
वर्तमान
ते एक गुप्त चारान दृढवचन दिव्चे, । |
589 |
एक गुप्तचाराक जव्चाक नज दुसरान कळूक, स्थिरीकृत करचे, । |
590 |
तरि तू पारितोषिक दित्ता एक गुप्त चाराक दुसराले दृष्टीन्तु, । |
अद्याय ६० उद्यम |
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591 |
कोण अधीन दवर्ता धन, सत्यान उद्यम कोर्नु स्वकीय कलेले । |
592 |
सत्याचे
धन असा शक्तियुक्त मनाचे; । |
593 |
उद्यमान्तु असचे
ना उपोव्चे, । |
594 |
तिजे
स्वयं
सम्मत
मेळेल्यान पडता
भाग्य
दिकचे, । |
595 |
उवार
वयिरि
येव्चे
कमलाचे
देंटा
वृद्धि
जत्ता, । |
596 |
कसले
किते
तरि जल्यारि तू चिंतिता, असूका एक उन्नत मन ते; । |
597 |
परिक्षीणित जलेले
मुखाक, बलवन्त मनुष्य भिव्चिना । |
598 |
गरीब
उमेदान
असचे
कायि
ना मेळ्चे, । |
599 |
आकारान
व्होडली
असा जल्यारियि हस्ति भिता, । |
600 |
मनाचि
शक्ति
कर्ता
जीवांक
महान; । |
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