Thirukkural in Konkani |
पुस्तक एक: स्नेहापासून
अद्याय १०९ तिजे सौन्दर्यान जल्लले संभ्रम |
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1081 |
देवी?
दुर्लभ मयूर जाति?
अथवा मनुष्य जाति । |
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1082 |
मिजे अविवेक दृष्टिक दित्ता प्रति उत्तर दृष्टिपात तिजे, । |
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1083 |
हांव जाणता ना
जलो मरण पूर्वेक,
जल्यारि हांव जाण अत;
। |
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1084 |
असा ती
सौम्य,
जल्यारि ते
दोळे पित्ता प्राणु मिजे,
। |
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1085 |
ये
मरणाचे अस्त्रवे,
उज्ज्वल दोळे अथवा चित्तळाचे वीक्षण?
। |
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1086 |
तरि तिजे दोळ्या बावना अनी मुखावरण ते
शर,
। |
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1087 |
वस्त्र ते
तीजे पडल्या वक्षस स्थानाचेरि,
। |
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1088 |
मिजि शक्ति,
त्याजे मुकारि भित्ताति अनेक शत्रुजन,
। |
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1089 |
एक
हरिण वत्साचे लज्जे वीक्षणा मण्कि असा ती
नेसून मर्यादेन;
। |
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1090 |
कोण ते
पित्तल्यांक,
दित्ता संतोष सुरापान;
। |
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अद्याय ११० लक्षण वाचप् |
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1091 |
असा तिका दोनि दृष्टि; एक वेदना कर्ता उत्पादन; । |
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1092 |
केवल
एक चोरायेचि वीक्षण असा तेजस् तेंचि, । |
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1093 |
तिणे पळेयले,
अनी पळेयतवत्,
तिणे बव्गेले मस्तक तिजे;
। |
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1094 |
तरि असा हाव पळोव्चेचि,
तिजे दोळे भूमीचेरि असा,
। |
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1095 |
ती
चोयली पोळोव्चाक ना
मका,
जल्यारि मंदहास तिगेलो असा,
। |
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1096 |
असा तरि जल्यारीयि उत्तरनि,
अनुराग ते
अंगीकार करनाति,
। |
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1097 |
कोपाचि उत्तरं,
जल्यारि प्रेमभावाचे दोळे प्रकट कर्ता,
। |
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1098 |
कारुण्य सहित,
हाव मुख तिजे पळेयता असा,
। |
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1099 |
उदासीन दृष्टीचो तो स्नेहु असा कपड रुपान्तु, । |
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1100 |
केन्ना दोळ्यांक दोळे प्राप्त जले संमतीक कारण, । |
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अद्याय १११. आलिंगनाचे आनन्द |
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1101 |
पंचेन्द्रिय सर्वै सर्वानन्द दित्ता मका,
। |
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1102 |
व्याधिशमन अनी व्याधिअसा दृडनिश्चित विरुद्ध तें, । |
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1103 |
एकल्याले प्रियतमाले हतान्तु कडचे विश्रम,
भारि सुखमय तें,
। |
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1104 |
कोणाले थकून प्राप्तकेली अद्भुत अग्नी तीणे ती? । |
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1105 |
फुला माळानि,
केश केल्या बन्दित तिजे;
। |
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1106 |
केन्ना हांव,
त्या निष्कलंक युवतीले हाथ प्राप्त कर्ता, । |
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1107 |
एकल्यालो अनुकंपेन स्वकीय आहारु भागु गेव्चे समान,
। |
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1108 |
मधुर आलिंगन सहित असा सानुराम कामुक बन्दित,
। |
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1109 |
कामुकांगेले विरोध,
वापस मेळप,
वात्सल्य युक्त आलिंगन तें,
। |
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1110 |
मनुष्य
अधिक
शिखताति, अधिक ते इच्छितायि शिखचाक जाव्न, । |
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अद्याय ११२ . तिगेले सौन्दर्य |
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1111 |
मृदुल फुला,
असचाक पुरो तू
तारणव,
। |
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1112 |
फुलां दिकल्या ती
सुमार लेकिल्या असा हांवे,
तिजे दोळ्या समान,
। |
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1113 |
एक
वेंणाकुर शरीर तिजे,
सुगंध वहन कर्ता वारें तें,
। |
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1114 |
दोळे तिजे,
अति शोभित उज्वल,
ख्याति तिजि कर्ता उत्कीर्तन,
। |
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1115 |
असा भारि मृदुल तनुमध्य कटी तिजी ती,
। |
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1116 |
जल्या नक्षत्रांक संभ्रम,
जले मूर्च्छन तांचे गृहपथान्तु,
। |
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1117 |
तरि जत्ता प्रकाशित सौन्दर्यमय;
चन्द्रमाक असा कलंक । |
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1118 |
हे
चन्द्रमा जा
वृद्धिमान,
जत्ता तरि युका जव्चाक केवल प्रकाशितमान,
। |
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1119 |
पुष्पमय दोळे असल्या तू, करि विसृज रम्य तुजी कान्ति मका जाव्न, । |
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1120 |
राजहंसालि पंख अनी मृदुल मधुमय फुलांचि,
। |
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अद्याय ११३. कामाचि महिमा |
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तो |
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1121 |
मृदुल भाषिणी तरुणी लाळ तिजी दन्ता थकून उदपादन जव्चि । |
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1122 |
युवति यी
हांव खरे स्नेहबंधित असा,
। |
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1123 |
अवसर करचाक त्या उज्वल भौरियाचि कामिनीक ह्रदयान्तु मिजे,
। |
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1124 |
लगी आकर्षण करीत,
दित्ता मका ती
नवे जीवित,
।
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1125 |
तरि जत्ता मका विसोरचाक एक
वेळा,
तेन्ना जत्ता अतिमात्र पुनरुथित स्मरण,
। |
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ती |
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1126 |
मिजे दोळ्यान्तु मिजे तेजावह प्राणेशु वास करता असा,
। |
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1127 |
मिजो प्रियतमु कर्ता निवास मिजे दोळ्यान्तु,
। |
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1128 |
मिजो प्राणनाथु कर्ता वासु मिजे ह्रदयान्तु;
ना
हावे खव्चे । |
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1129 |
भिता करूक गुप्त ताजे रुप, दंपिना मिजे दोळे हांव, । |
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1130 |
पूर्ण आनन्दान मिजे ह्रदयान्तु तो
रबता,
। |
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अद्याय ११४. सोडिले नियंत्रण |
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तो |
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1131 |
कोण प्रणयाभिरुचि पळेयले नन्तर,
अतं वेदना अनुभव पव्ता,
। |
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1132 |
तिजो जीव अनी देह,
अपमान लेखान्तु काडिना कायितरि;
। |
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1133 |
नियंत्रण अनी पौरुष
हांवे एक
वेळारि धारण केलें,
। |
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1134 |
मिजे पौरुषाचे पंगायि अनी अपमान स्थायीकृत करुक जायना तें,
। |
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1135 |
कृश,
फुला समान,
कंकण धारण केलेल्या युवति,
। |
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1136 |
तालपत्र गोंडया पासून,
हांव चिंतिता मध्यान रात्रि वेळारि;
। |
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1137 |
ना
कोणीय श्रेष्ठ एक बायलमनिषीपशि
कोणकी आरुढ जायना । |
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ती |
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1138 |
तरि कळ्या असा वात्सल्य अनी चारितार्थ्या पसून तें । |
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1139 |
'कोणाकयि कळना मिजो स्नेहु' तशि संगतायि मिजे प्रणयित जाव्नु, । |
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1140 |
मिजे
दोळ्या
मुकारि
मूढ ते हस्तायि अनी उत्तापताति, । |
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अद्याय ११५ जनप्रवादाचो प्रचार |
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तो |
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1141 |
यें ल्हान जनप्रवाद संरक्षण कर्ता मिजे अमूल्य जीवना,
। |
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1142 |
कळनाति तिजे पुष्पा सारके ते
दोळे प्रकाशित जता,
। |
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1143 |
नयि वे
नगरान्तुले जनप्रवाद एक
लाभु मका
? । |
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1144 |
प्रसरित जनप्रवाद मिजे कामविकाराक उत्थापन कर्ता,
। |
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1145 |
चड्
एकलो पित्ता,
चड्
तो
जत्तलो उल्लासवन्त जाव्न । |
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ती |
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1146 |
दिकिलो हांवे एक
वेळारि मात्र तका,
जल्यारि जनप्रवाद जल्या अतिशीग्र व्यापक,
। |
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1147 |
जनप्रवाद दिता तका सारें,
उदका प्रवाहा समान । |
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1148 |
असा संगचाक ते
उपवाद कर्तालो नाशु आशेक,
। |
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1149 |
'भिवूनका!' ताणे सांगलें, जल्यारियि हडिलो मका अपवाद एक, । |
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1150 |
ये
नगर जनप्रवाद प्रसार कर्ता अमि दोगेयि आशेतायि,
। |
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अद्याय ११६ असहिष्णुता वियोग |
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1151 |
तरि तू
सोडून वचना मका,
उलोव्का मिजेकडेन,
। |
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1152 |
एक कालाक असलो परम संतोष तो ताजे मुख पोळोव्चान्तु । |
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1153 |
तरि कोण तो
जाणता फुटुचे ह्रदयमिजे ते
वच्चेंचि जता,
। |
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1154 |
तरि तो
कोण वात्सल्यान सांगता
"भियूनका"
ते
सोडचेचि जत्ता,
। |
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1155 |
रक्षण करच्याक मिजो जीवु,
ताजे वच्चे कृपेन प्रतिबंध करचे;
। |
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1156 |
कठिन
ह्नदय
मनुष्य
असा तो, सांगेचे मगीर मेळचे; । |
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1157 |
कंकण निसोरचे मिजे मनगटा थकून दित्ता भविष्य वचन । |
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1158 |
रबचे मित्रहीन नगरान्तु असा अस्वस्थता जत्ता,
। |
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1159 |
तो
अग्नि जळ्ता स्पर्शित केल्या मात्रान सिधकोर्नु दकैता,
। |
|
1160 |
जल्यारि,
सोडचे शोकाचे दुःख विषाद,
बहु विध सहिष्णुतेन,
। |
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अद्याय ११७ आक्षेप करचे |
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1161 |
हाव कर्तलो गुप्त मिजी वेदना; जल्यारि ते जत्ता वर्धन । |
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1162 |
मका जायना लिपोव्चाक वेदना,
ती
जल्यारि कर्ता लज्ज नियंत्रणान । |
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1163 |
मिजे ह्नदय भुजाखन्दया मण्कि,
क्षीणित पविले शरीर भितरचे । |
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1164 |
एक
स्नेहाचे समुद्रु विस्तृत जल्या हावे दिकचे पूर्वेक । |
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1165 |
कोण तो
स्नेहशीलेन कारणभूत जत्ता कितुलकी दुःखाक । |
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1166 |
एक
संतोषयुक्त स्नेहु असा आनंदाचो समुद्र समान एक
। |
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1167 |
हाव पोव्ता निष्ठूर त्या स्नेहाचे स्त्रोतस जल्यारि जायना तड दिकचाक । |
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1168 |
रात्रि धाडता सर्वै सजीव प्राण्याक करूक अगाध गाड निद्रा । |
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1169 |
मिजे निष्ठूर स्नेहापसि
चड
निष्ठूर असा ती निष्ठूर राति । |
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1170 |
मिजे ह्नदया समान मिजे दोळे वत्तले तजे लगीचि । |
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अद्याय ११८ दुःखान्तु शोषण जलेले दोळे |
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1171 |
मिजे दोळ्यानि दकैले ताजे रूप अनी केले वेदना मका उत्पादन,
। |
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1172 |
मिजे शरा दोळ्याचे कळनत्तिले वीक्षण आसले स्वल्पमात्रान;
।
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1173 |
दोळे ते
विक्षेप करचे तसले वीक्षण कपट नात्तिले कर्ता । |
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1174 |
मिजे दोळ्यानि रोधन केले ताचे अश्रुधारा संग्रह नाजल्या त्या मरेन,
। |
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175 |
स्नेहाचे दुःख असा समुद्रापशि महत जाव्न;
। |
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1176 |
दोळ्यान दिल्या मका वेदना केल्या हरण तानि जाव्न । |
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1177 |
दोळे मृदुल,
करगूचे केले निरीक्षण त्या दिवसा ताजे;
। |
|
1178 |
कोण उलेयलें स्नेहा विषयी,
स्नेहा नत्तिले अतं रबिल्या ते
। |
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1179 |
तरि तो
येत्ता अथवा ना,
मिजे दोळ्यांक विश्रम ना;
। |
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1180 |
लोक अनायासान परिज्ञान प्रतिवाद करताति । |
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अद्याय ११९ पाण्ड वर्ण |
|
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1181 |
तो इच्छिता वचाक; हावे संमतदिले ताजे अभिप्रायाचेरि, । |
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1182 |
ताणे दिले यो
पांड वर्ण,
देखून तें असा अभिमान । |
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1183 |
ताणे चोरायले मका मिजे आगमनाचेरि अनी अपमानित,
। |
|
1184 |
हाव चिंतिता तका अनी केन्नायि तजी कीर्तिक प्रशंसकर्ता,
। |
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1185 |
मिजे कामुक गेलो एक
स्थलारि थकून दुसरे स्थलारि परिभ्रमण जाव्नु;
। |
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1186 |
केन्ना प्रकाशु विराम पाव्ता,
काळूक ताजे स्थानारि दर्ता स्थान,
। |
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1187 |
हाव पडलो ताजे आलिंगनान्तु अनी घुव्ण्डायिले मिजे मुख ते,
। |
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1188 |
मिजे पांण्ड वर्णा खतीरि उलेयताति नगरीं भितेरि जाव्नु,
। |
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1189 |
तरि तो
कोण उपण्याले म्होणु कर्ता मिजे ह्नदय असा स्पश्ट अपरादाथकून, । |
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1190 |
संपादन करूक एक
नाव पाण्डा खतीरि हाव वरना मनान्तु,
। |
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अद्याय १२० एकान्तित यातना |
||
1191 |
तरि तांगेले प्रियतमालो स्नेहु तानी मेळोव्चो जत्ता,
। |
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1192 |
कशी स्वर्ग सजीव मनुष्यांचेरि तांचो पाव्सु कर्ता प्रदान,
। |
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1193 |
मात्र त्या परस्पर स्नेहाचो अभिमान दिव्यात,
। |
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1194 |
सर्वानि स्नेहु पाविले ते
असा अतंयि मंदभाग्य आसिले जाव्नु,
। |
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1195 |
ना
तरि जल्यारि परस्पर स्नेह दोगाच्या भितेरि,
। |
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1196 |
एक
भागाचो स्नेह असा तो
दुकिचो,
जल्यारि स्नेह परस्पर,
। |
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1197 |
केन्ना कामदेव दवर्ता ताजे बणाचे लक्ष्य केवल मिजेरि,
। |
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1198 |
कोण जीवित कडता तांगेले जीवन केवल नत्तिले एक
वाचक । |
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1199 |
मिगेलो स्नेहु अर्पण करचाक जायना स्नेह मिजेरि ताजो,
। |
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1200 |
करचे मिजे दुःख उत्स्त्रृज एकल्याचेरि कोण करना स्नेह मिजेरिचि,
। |
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