Thirukkural in
Sanskrit
तिरुक्कुरळ् - संस्कृतानुवाद् |
THIRUVALLUVAR'S
THIRUKKURAL
IN
SANSKRIT SLOKAS
BY
S.N.
Srirama Desikan, Siromani
WITH AN
INTRODUCTION BY
Dr. C.P. Ramaswamy Aiyar
विषय-सूची
भाग–१: धर्मकाण्ड:
001 to 010 (Click here)
1. ईश्वरवन्दनम्
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6. पत्नी
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2. वृष्टिमहिमा
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7. पुत्रभाग्यम्
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3. यतिवैभवम्
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8. प्रीति:
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4. धर्मवैशिष्ट्यम्
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9. अतिथिसत्कार:
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5. गार्हस्थ्यम्
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10. मधुरालाप:
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11. कृतज्ञता
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16.
क्षमा
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12. ताटस्थ्यम्
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17. अनसूयता
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13. निग्रहशीलता
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18. अलोभ:
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14. सदाचारसंपत्ति:
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19. परोक्षनिन्दावर्जनम्
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15. परदारपराङ्मुखता
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20. वृथालापनिषेध:
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21. दुष्कर्मभीति:
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26. मांसवर्जनम्
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22. लोकोपकारिता
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27. तप:
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23. दानम्
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28. दुराचार:
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24. कीर्ति:
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29. चौर्यनिषेध:
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25. दया
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30. सत्यवचनम्
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अधिकार 031 to 038 (Click here)
31. क्रोधविजय:
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35. सन्यास:
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32. अपकारत्याग:
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36. तत्वज्ञानम्
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32. अपकारत्याग:
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36. तत्वज्ञानम्
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33. अवध:
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37. निराशा
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32. अपकारत्याग:
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36. तत्वज्ञानम्
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33. अवध:
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37. निराशा
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38. विधि:
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भाग–२: अर्थ-काण्ड:
अध्याय 039to 050 (Click here)
अध्याय 051 to 060 (Click here)
39. राजमहिमा
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40. विद्या
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41. विद्याविहीन:
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42. श्रवणम्
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43. ज्ञानसम्पत्ति:
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44. दोषषट्कनिराकरणम्
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45. महत्साह्यम्
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46. दु:साङ्गत्यवर्जनम्
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47. विमृश्यकारिता
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48.बलपरिज्ञानम्
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49. कालपरिज्ञानम्
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50. स्थलपरिज्ञानम्
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51. विभृश्यविश्वसनम्
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56. अनीत्यापालनम्
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52. विमृश्य कार्यकरणम
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57. निर्भयत्वन्
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53. बन्धुप्रीति
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58. दाक्षिण्यम्
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54. अविस्मरणम्
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59. चारप्रेषणम्
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55. नीतिपरिपालनम्
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60. उत्साहसम्पत्ति:
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अध्याय 061 to 070 (Click here)
61. आलस्याभाव
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66. क्रियाशुद्धि
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62. प्रयत्नशीलत्वम्
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67. क्रियादाढर्यम्
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63. औत्सुक्यम्
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68. कार्याचरणप्रकार:
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64. अमात्य:
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69. दौत्यम्
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65. वाग्मित्वम्
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70. राजसेवा
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71. इङ्गितपरिज्ञानम्
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76. अर्थार्जनोपाय:
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72. सभास्वरूपम्
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77. सैन्यप्रयोजनम्
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73. सभाकम्पविहीनता
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78. सेनादार्ढ्यम्
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74. देश्:
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79. स्नेह:
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75. दुर्ग:
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80. स्नेह्अपरीक्षा
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अध्याय 081to 090 (Click here)
81. प्राक्तनस्नेह:
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86. भेदबुद्ध:
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82. निर्गुणजनमैत्री
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87. शत्रुनिर्णय:
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83. आन्तरस्नेहशून्यता
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88. विरोवतत्त्वपरिज्ञानम्
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84. मौढ्यम्
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89. आन्तरवैरम्
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85. अल्पज्ञत्वम्
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90. महात्मनिन्दानिराकरणम्
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91. भार्यानुवर्तनम्
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96. कुलीनत्वम्
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92. पण्याङ्गना
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97. मानम्
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93. मद्यपाननिषेध:
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98. महत्त्वम्
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94. द्यूत:
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99. विशिष्टगुणसम्पत्ति:
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95. औषधम्
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100. अनुसृत्य प्रवर्तनम्
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अध्याय 101 to 108 (Click here)
101. निरर्थकं वित्तम्
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105. दारिद्र्यम्
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102. लज्जाशीलता
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106. याचना
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103. कुलगौरवरक्षणम्
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107. याचनाभीति:
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104. कृषिकर्म
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108. नीचत्वम्
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भाग–३: काम-काण्ड:
अध्याय 109to 120 (Click here)
109. दर्शनंवितर्कश्च तिरुक्कुरळ्
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115. अपवादकथनम्
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110. भावपरिज्ञानम्
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116. वियोगसहनम्
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111. सम्भोगसुखम्
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117. वियोगदु:खानुभव:
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112. लावण्यमहिमा
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118. नायकदिदृक्षामृलकखेद:
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113. प्रेमप्रभावकथनम्
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119. वैवर्ण्यमूलकव्यसनम्
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114. निर्लज्जात्वकथनम्
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120. वियोगव्यसनाधिक्यम्
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अध्याय 121 to 133 (Click here)
121. अनुभृतसुखं स्मृत्वा रोदनम्
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128. अभिज्ञाननिवेदनम्
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122. दृष्टस्वप्नकथनम्
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129. संभोगत्वरा
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123. सायङ्कालदर्शनेन खेद:
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130. मनसि निर्वेद:
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124. अवयवसौन्दर्यहानि:
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131. विप्रलम्भ:
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125. मनस्येव कथनम्
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132. विप्रलम्भरहस्यम्
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126. धैर्यहानि:
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133. विप्रलम्भसुखम्
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127. कामुकयोरन्योन्यव्यसनम्
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